सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
निष्पादन-प्रक्रिया
धारा ५१ :
निष्पादन कराने की न्यायालय की शक्तियां :
ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाए, न्यायालय डिक्रीदार के आवेदन पर आदेश दे सकेगा कि डिक्री का निष्पान -
क) विनिर्दिष्ट रुप से डिक्रीत किसी सम्पत्ति के परिदान द्वारा किया जाए ;
ख) किसी सम्पत्ति की कुर्की और विक्रय द्वारा या उसकी कुर्की के बिना विक्रय द्वारा की जाए ;
ग) १.(जहां धारा ५८ के अधीन गिरफ्तारी और निरोध अनुज्ञेय है वहां गिरफ्तारी आरै ऐसी अवधि के लिए जो उस धारा में विनिर्दिष्ट अवधि से अधिक न हो,) कारगार में निरोध द्वारा किया जाए ;
घ) रिसीवर की नियुक्ति द्वारा किया जाए ; अथवा
ङ) ऐसी अन्य रीति से किया जाए जिसकी दिए गए अनुतोष की प्रकृति अपेक्षा करे :
२.(परन्तु जहां डिक्री धन के संदाय के लिए है वहां कारगार में निरोध द्वारा निष्पादन के लिए आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि निर्णीत-ऋणी को इसके लिए हेतुक दर्शित करने का अवसर देने के पश्चात् कि उसे कारगार को क्यों न सुपुर्द किया जाए, न्यायालय का अभिलिखित कारणों से यह समाधान नहीं हो जाता है कि -
क) निर्णीत-ऋणी इस उद्देश्य से या यह परिणाम पैदा करने के लिए कि डिक्री के निष्पादन में बाधा या विलम्ब हो,-
एक) न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं से फरार होने वाला है या उन्हें छोडने वाला है, अथवा
दो) उस वाद के संक्षिप्त किए जाने के पश्चात् जिसमें वह डिक्री पारित की गई थी अपनी सम्पत्ति के किसी भाग को बेईमानी से अन्तरित कर चुका है, छिपा चुका है या हटा चुका है अथवा अपनी सम्पत्ति के सम्बन्ध में असद्भावपूर्ण कोई अन्य कार्य कर चुका है, अथवा
ख) डिक्री की रकम या उसके पर्याप्त भाग का संदाय करने के साधन निर्णीत-ऋणी के पास है या डिक्री की तारीख के पश्चात् रह चुके है और वह उसे संदत्त करने से इंकार या संदत्त करने में उपेक्षा करता है या कर चुका है,
ग) डिक्री उस राशि के लिए है, जिसका लेखा देने के लिए निर्णीत-ऋणी वैश्वावासिक हैसियत में आबद्ध था ।
स्पष्टीकरण :
खण्ड (ख) के प्रयोजनों के लिए, निर्णीत-ऋणी के साधनों की गणना करने में, ऐसी सम्पत्ति गणना में से छोड दी जाएगी, जो डिक्री के निष्पादन में कुर्क किए जाने से तत्समय प्रवृत्त किसी विधि या विधि का बल रखने वाली रुढि द्वारा या उसके अधीन छूट-प्राप्त है ।
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१. १९७६ के अधिनियम सं. १०४ की धारा २१ द्वारा (१-२-१९७७ से) अन्त:स्थापित ।
२. १९३६ के अधिनियम सं. २१ की धारा २ द्वारा अन्त:स्थापित ।
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