सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
धारा ५० :
विधिक प्रतिनिधि :
१) जहां डिक्री के पूर्णत: तुष्ट किए जाने से पहले निर्णीत-ऋणी की मृत्यु हो जाती है वहां डिक्री का धारक डिक्री पारित करने वाले न्यायालय में आवेदन कर सकेगा कि वह उसका निष्पादन मृतक के विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध करे ।
२) जहां डिक्री ऐसे विधिक प्रतिनिधि के विरुद्ध निष्पादित की जाती है वहां वह मृतक की सम्पत्ति के उस परिणाम तक ही दायी होगा जितने परिणाम तक वह सम्पत्ति उसके हाथ में आई है सम्यक् रुप से व्ययनित नहीं कर दी गई है और डिक्री निष्पादित करने वाला न्यायालय ऐसा दायित्व अभिनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए स्वप्रेरणा से या डिक्रीदार के आवेदन पर ऐसे लेखाओं को, जो वह न्यायालय ठीक समझे, पेश करने के लिए ऐसे विधिक प्रतिनिधि को विवश कर सकेगा ।
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