धारा २७ : इस अध्याय के उल्लंघन.. विक्रय आदि के लिए शास्ति :
ओषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम १९४०
धारा २७ :
१.(इस अध्याय के उल्लंघन में ओषधियों के विनिर्माण, विक्रय आदि के लिए शास्ति :
जो कोई स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा,-
(क) किसी औषधि का, जो धारा १७क के अधीन अपमिश्रित या २.(धारा १७ख के अधीन नकली समझी गई है और जिससे) तब जब उसका किसी व्यक्ति द्वारा किसी रोग या विकार के निदान, उपचार, शमन या निवारण के लिए उपयोग किया जाता है, उसकी मृत्यु हो जाने की सम्भाव्यता है या उसके शरीर को ऐसी हानि हो जाने की सम्भाव्यता है जो भारतीय दण्ड संहिता (१८६० का ४५) की धारा ३२० के अर्थ में घोर उपहति की कोटि में केवल इस कारण आएगी कि ऐसी ओषधि, यथास्थिति, अपमिश्रित या नकली है या मानक क्वालिटी की नहीं है, विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय या वितरण के लिए प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा या वितरित करेगा, वह २.(कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम न होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी दंडनीय होगा और जुर्माने का भी, जो दस लाख रुपए या अधिहृत औषधि के मूल्य का तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम का न होगा, दायी होगो) :
३.(परन्तु इस खंड के अधीन दोषसिद्ध व्यक्ति पर अधिरोपित और उससे वसूल किया गया जुर्माना प्रतिकर के रूप में उस व्यक्ति को संदत्त किया जाएगा जिसने इस खंड में निर्दिष्ट अपमिश्रित या नकली ओषधियों का उपयोग किया था :
परन्तु यह और कि जहां इस खंड में निर्दिष्ट अपमिश्रित या नकली ओषधियों के उपयोग से ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हो गई है, जिसने ऐसी ओषधियों का उपयोग किया था, वहां इस खंड के अधीन दोषसिद्ध व्यक्ति पर अधिरोपित और उससे वसूल किया गया जुर्माना ऐसे व्यक्ति के नातेदार को संदत्त किया जाएगा जिसकी इस खंड में निर्दिष्ट अपमिश्रित या नकली
ओषधियों के उपयोग के कारण मृत्यु हुई थी।
स्पष्टीकरण :
दूसरे परन्तुक के प्रयोजनों के लिए, नातेदार पद से निम्नलिखित अभिप्रेत है -
(एक) मृतक व्यक्ति का पति या पत्नी ; या
(दो) अवयस्क धर्मज पुत्र और अविवाहित धर्मज पुत्री तथा विधवा माता; या
(तीन) अवयस्क पीड़ित व्यक्ति के माता-पिता ; या
(चार) मृतक व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके उपार्जन पर पूर्ण रूप से आश्रित ऐसा पुत्र या पुत्री, जिसने अठारह वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है; या
(पांच) निम्नलिखित में से कोई व्यक्ति यदि वह मृतक व्यक्ति की मृत्यु के समय उसके उपार्जन पर, पूर्णत:
या भागत: आश्रित है,-
(क) माता-पिता; या
(ख) अवयस्क भाई या अविवाहित बहन; या
(ग) विधवा पुत्रवधू ; या
(घ) विधवा बहन ; या
(ङ) पूर्व मृत पुत्र की अवयस्क संतान ; या
(च) ऐसी पूर्व मृत पत्नी की अवयस्क संतान जहां संतान के माता-पिता में से कोई जीवित नहीं है; या
(छ) दादा-दादी, यदि ऐसे सदस्य के माता या पिता में से कोई जीवित नहीं है ;)
(ख) किसी औषधि का, -
(एक) जो धारा १७क के अधीन अपमिश्रित समझी गई है किन्तु जो खंड (क) में निर्दिष्ट ओषधि नहीं है; या
(दो) धारा १८ के खंड (ग) के अधीन यथा अपेक्षित विधिमान्य अनुज्ञप्ति के बिना,
विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय के लिए प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा, या वितरण करेगा, वह कारावास से ३.(जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम न होगी किन्तु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो एक लाख रुपए या अधिèहत ओषधियों के मूल्य के तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम का न होगों) दण्डनीय होगा:
परन्तु न्यायालय, निर्णय में अभिलिखित किए जाने वाले किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों से ३.(तीन वर्ष से कम के कारावास का और एक लाख रुपए से कम के जुर्माने का) दण्ड अधिरोपित कर सकेगा;
(ग) किसी औषधि का, जो धारा १७ ख के अधीन नकली समझी गई है किन्तु जो खंड (क) में निर्दिष्ट ओषधि नहीं है, विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय के लिए प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा या वितरण करेगा, वह कारावास से ३.(ििजसकी अवधि सात वर्ष से कम न होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो तीन लाख रुपए या अधिहृत ओषधियों के मूल्य के तीन गुना, इनमें से जो भी अधिक हो, से कम का न होगा) दण्डनीय होगा:
परन्तु न्यायालय, निर्णय में अभिलिखित किए जाने वाले किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों से ३.(सात वर्ष से कम अवधि के कारावास का जो तीन वर्ष से कम अवधि का न हो, और एक लाख रुपए से कम के जुर्माने का दण्ड अधिरोपित कर
सकेगा;)
(घ) किसी औषधि का, जो खंड (क) या खंड (ख) या खंड (ग) में विनिर्दिष्ट ओषधि से भिन्न है, इस अध्याय या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम के किसी अन्य उपबंध के उल्लंघन में विक्रयार्थ या वितरणार्थ विनिर्माण करेगा या विक्रय करेगा या स्टाक रखेगा या विक्रय के लिए प्रदर्शित करेगा या प्रस्थापित करेगा या वितरण करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष से कम न होगी किन्तु जो दो तक वर्ष की हो सकेगी, ३.(और जुर्माने से जो बीस हजार रुपए से कम का न होगा) दण्डनीय होगा:
परन्तु न्यायालय निर्णय में अभिलिखित किए जाने वाले किन्हीं पर्याप्त और विशेष कारणों से एक वर्ष से कम के कारावास का दंड अधिरोपित कर सकेगा।
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१. १९८२ के अधिनियम सं० ६८ की धारा २२ द्वारा (१-२-१९८३ से) धारा २७ और २७क के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. २००८ के अधिनियम सं० २६ की धारा ६ द्वारा प्रतिस्थापित।
३. २००८ के अधिनियम सं० २६ की धारा ६ द्वारा अंत:स्थापित ।
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