लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम १९८४
धारा २ :
परिभाषाएं :
इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
क) रिष्टि का वही अर्थ होगा जो भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५) की धारा ४२५ में है;
ख) लोक संपत्ति से अभिप्रेत है ऐसी कोई संपत्ति, चाहे वह स्थावर हो या जंगम (जिसके अन्तर्गत कोई मशीनरी है), जो निम्नलिखित के स्वामित्व या कब्जे में या नियंत्रण के अधीन है :-
एक) केन्द्रीय सरकार; या
दो) राज्य सरकार; या
तीन) स्थानीय प्राधिकारी; या
चार) किसी केन्द्रीय, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित निगम; या
पांच) कंपनी अधिनियम, १९५६ (१९५६ का १) की धारा ६१७ में परिभाषित कम्पनी; या
छह) ऐसी संस्था, समुत्थान या उपक्रम, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे :
परन्तु केन्द्रीय सरकार इस उपखण्ड के अधीन किसी संस्था, समुत्थान या उपक्रम को तभी विनिर्दिष्ट करेगी जब ऐसी संस्था, समुत्थान या उपक्रम का केन्द्रीय सरकार द्वारा अथवा एक या अधिक राज्य सरकारों द्वारा अथवा भागतः केन्द्रीय सरकार द्वारा और भागतः एक या अधिक राज्य सरकारों द्वारा प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उपबन्धित निधियों द्वारा पूर्णतः या पर्याप्ततः वित्तपोषण किया जाता है।
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