सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
परिशिष्ट क :
अभिवचन :
प्ररुप संख्यांक २९ :
रेल-पथ पर उपेक्षा से हुई क्षतियां :
(शीर्षक)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है कि -
१. ता. ----------- को प्रतिवादी ---------------- और --------------- के बीच रेल द्वारा यात्रियों को ले जाने के लिए सामान्य वाहक थे ।
२. उस दिन वादी उक्त रेल-पथ पर प्रतिवादी के डिब्बों में से एक में यात्री था ।
३. जब वह ऐसा यात्री था तब ------------ में (या ---------- के स्टेशन के निकट या ---------- और --------- स्टेशनों के बीच) प्रतिवादियों के सेवकों की उपेक्षा और अकौशल के कारण उक्त रेल पर टक्कर हो गई, जिससे वादी को अपनी टांग टूट जाने, अपना सिर फट जाने इत्यादि से और यदि कोई विशेष नुकसान हुआ हो तो लिखिए ) बहुत क्षति हुई और उसे अपनी चिकित्सीय-परिचयो पर व्य उपगत करना पडा और वह बिक्रीकर्ता के रुप में अपना पूर्ववर्ती कारबार करने से स्थायी रुप से अशक्त हो गया है ।
(जैसा प्ररुप संख्यांक १ के पैरा ४ और ५ में है, और वह अनुतोष जिसका दावा किया गया है ।)
(या इस भांति-२. उस दिन प्रतिविदियों ने इंजन और उससे संलग्न डिब्बों की रेलगाडी को प्रतिवादियों की रेल की लाइन पर जिसको वादी विधिपूर्वक उस समय पार कर रहा था, अपने सेवकों के द्वारा ऐसी उपेक्षा और अकौशल से चलाया और उसका संचालन किया कि उक्त इंजन और रेलगाडी आगे बढकर वादी से टकरा गई जिसके कारण ---------- इत्यादि जैसा कि पैरा ३ में है ।)
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