सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८
परिशिष्ट क :
अभिवचन :
प्ररुप संख्यांक ३१ :
विद्वेषपूर्ण अभियोजन के लिए :
(शीर्षक)
उक्त वादी क ख यह कथन करता है कि -
१. ता. ---------------- को प्रतिवादी ने -------------- से (जो उक्त नगर का मजिस्ट्रेट है या जो स्थिति हो वह लिखिए) ------------- के आरोप पर गिरफ्तारी का वारण्ट अभिप्राप्त किया और उसके बल बर वादी गिरफ्तार किया गया और ---------------- (दिनों या घण्टों के लिए) कारावासित रहा और (अपनी निर्मुक्ति के लिए उसने ------------ रुपयों की जमानत दी ।)
२. ऐसा करने में प्रतिवादी ने विद्वेषपूर्वक और युक्तियुक्त का अधिसम्भाव्य हेतुक के बिना कार्य किया ।
३. ता. -------------- को मजिस्ट्रेट ने प्रतिवादी का परिवाद खारिज कर दिया और वादी को दोषमुक्त कर दिया ।
४. अनेक व्यक्तियों ने, जिनके नाम वादी को अज्ञात है, गिरफ्तारी की बात सुनकर और वादी को अपराधी अनुमान करके उसके साथ कारबार करना छोड दिया है; या ङ च के लिपिक के रुप में अपने पद को वादी उक्त गिरफ्तारी के परिणामस्वरुप खो बैठा ; या परिणामस्वरुप वादी को शरीर और मन की पीडा सहनी पडी और वह अपना कारबार करने से निवारित रहा और उसकी साख को क्षति पहुंची, और उक्त कारावास से निर्मुक्त होने के लिए और उक्त परिवाद के विरुद्ध अपनी प्रतिरक्षा करने के लिए उसे व्यय उपगत करना पडा ।
(जैसा प्ररुप संख्यांक १ के पैरा ४ और ५ में है, और वह अनुतोष जिसका दावा किया गया है ।)
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