दण्ड प्रक्रिया संहिता १९७३
अध्याय ३ :
न्यायालयों की शक्ति :
धारा ३१ :
एक ही विचारण में कई अपराधों के लिए दोषसिद्ध होने के मामलों में दण्डादेश :
१)जब एक विचारण में कोई व्यक्ति दो या अधिक अपराधों के लिए दोषसिद्ध किया जाता है तब, भारतीय दण्ड संहिता (१८६० का ४५) की धारा ७१ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, न्यायालय उसे उन अपराधों के लिए विहित विभिन्न दण्डों में से उन दण्डों के लिए, जिन्हें देने के लिए ऐसा न्यायालय सक्षम है, दण्डादेश दे सकता है; जब ऐसे दण्ड कारावास के रुप में हों तब, यदि न्यायालय ने यह निर्देश न दिया हो कि ऐसे दण्ड साथ-साथ भोगे जाएँगे, तो वे ऐसे क्रम से एक के बाद एक प्रारम्भ होंगे, जिसका न्यायालय निर्देश दे ।
२)दण्डादेशों के क्रमवर्ती होने की दशा में केवल इस कारण से कि कई अपराधों के लिए संकलित दण्ड उस दण्ड से अधिक है जो वह न्यायालय एक अपराध के लिए दोषसिद्धि पर देने के लिए सक्षम है, न्यायालय के लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि अपराधी को उच्चतर न्यायालय के समक्ष विचारण के लिए भेजे :
परन्तु -
क) किसी भी दशा में ऐसा व्यक्ति चौदह वर्ष से अधिक के कारावास के लिए दण्डादिष्ट नहीं किया जाएगा;
ख)संकलित दण्ड उस दण्ड की मात्रा के दुगने से अधिक न होगा जिसे एक अपराध के लिए देने के लिए वह न्यायालय सक्षम है ।
३)किसी सिद्धदोष व्यक्ति द्वारा अपील के प्रयोजन के लिए उन क्रमवर्ती दण्डादेशों का योग, जो इस धारा के अधीन उसके विरुद्ध दिए गए है, एक दण्डादेश समझा जाएगा ।
Code of Criminal Procedure 1973 in Hindi section 31.
section 31 Cr.P.C 1973 in hindi,crpc 1974 section 31 in hindi .
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