धारा ११० : यदि दुष्प्रेरित व्यक्ती दुष्प्रेरक के आशय से..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा ११० : यदि दुष्प्रेरित व्यक्ती दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से कार्य करता है , तब दुष्प्रेरण का दंड : अपराध का वर्गीकरण : अपराध : किसी अपराध का दुष्प्रेरण, यदि दुष्प्रेरित व्यक्ति दुष्प्रेरक के आशय से भिन्न आशय से… more »
धारा १०९ : यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरुप किया..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा १०९ : यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके परिणामस्वरुप किया जाए, और जहां कि उसके दण्ड के लिए कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं है, तब दुष्प्रेरण का दण्ड : अपराध का वर्गीकरण : अपराध : किसी अपराध का दुष्प्रेरण, यदि दुष्प्रेरित कार्य उसके… more »
धारा १०८ क : भारत से बाहर के अपराधों का भारत में...
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा १०८ क : १.(भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्रेरण : वह व्यक्ती इस संहिता के अर्थ के अन्तर्गत अपराथ का दुष्प्रेरण करता है, जो २.(भारत) से बाहर और उससे परे किसी ऐसे कार्य के किए जाने का २.(भारत) में दुष्प्रेरण… more »
धारा १०८ : दुष्प्रेरक(वह जो अपराध का कारित करना...
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा १०८ : दुष्प्रेरक(वह जो अपराध का कारित करना दुष्प्रेरित करे) : वह व्यक्ति अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है या ऐसे कार्य के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध होता, यदि वह… more »
धारा १०७ : किसी बात का दुष्प्रेरण ( उकसाना ) :
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : अध्याय ५ : दुष्प्रेरण के विषय में(दुष्प्ररित करने की कार्यवाई या तथ्य) : धारा १०७ : किसी बात का दुष्प्रेरण(उकसाना) : वह व्यक्ती किसी बात के किए जाने का दुष्प्रेरण(उकसाना) करता है, जो - पहला - उस बात को करने के लिए किसी… more »
धारा १०६ : घातक हमले के विरुद्ध निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा १०६ : घातक हमले के विरुद्ध निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार जबकि निर्दोष व्यक्ती को अपहानि होने की जोखिम है : जिस हमले से मृत्यु की आशंका युक्तियुक्त(सर्व मान्य) रुप से कारित होती है उसके विरुद्ध निजी(प्राइवेट)… more »
धारा १०५ : संपत्ती की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधि..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा १०५ : संपत्ती की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना : संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब प्रारंभ होता है, जब संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त(सर्व मान्य) आशंका प्रारंभ होती है । संपत्ति… more »
धारा १०४ : कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यू से भिन्न ...
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा १०४ : कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यू से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है : यदी वह अपराध, जिसके किए जाने या जिसके किए जाने के प्रयत्न से निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, ऐसी चोरी,… more »
धारा १०३ : कब संपत्ती की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के...
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा १०३ : कब संपत्ती की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यूकारित करने तक का होता है : संपत्ति की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा ९९ में वर्णित निर्बंधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की… more »
धारा १०२ : शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार..
भारतीय दंड संहिता १८६० हिंदी : धारा १०२ : शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना : शरीर की निजी(प्राइवेट) प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ(शुरु) हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकीं से शरीर के संकट की आशंका पैदा… more »