Categories: "Indian Laws in Hindi"
धारा २९ : विदेशी समनों की तामील :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २९ : १.(विदेशी समनों की तामील : वे समन और अन्य आदेशिकाएं जो - क) भारत के किसी भी ऐसे भाग में स्थापित किसी सिविल या राजस्व न्यायालय द्वारा जिस पर इस संहिता के उपबन्धों का विस्तार नहीं है; अथवा ख) किसी ऐसे सिविल या राजस्व… more »
धारा २८ : जहां प्रतिवादी किसी अन्य राज्य में निवास..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २८ : जहां प्रतिवादी किसी अन्य राज्य में निवास करता है वहां समन की तामील : १) समन अन्य राज्य में तामील किए जाने के लिए ऐसे न्यायालय को और ऐसी रीति से भेजा जा सकेगा जो उस राज्य में प्रवृत्त नियमों द्वारा विहित की जाए । २)… more »
धारा २७ : प्रतिवादियों को समन :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ समन और प्रकटीकरण धारा २७ : प्रतिवादियों को समन : जहां कोई वाद सम्यक् रुप से संस्थित किया जा चुका है वहां उपसंजात होने और दावे का उत्तर देने के लिए समन प्रतिवादी के नाम निकाला जा सकेगा १.(और उसकी तामील ऐसे दिन को, जो वाद के… more »
धारा २६ : वादों का संस्थित किया जाना :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ वादों का संस्थित किया जाना धारा २६ : वादों का संस्थित किया जाना : १.(१) हर वाद वादपत्र को उपस्थित करके, या ऐसे अन्य प्रकार से, जैसा विहित किया जाए, संस्थित जाएगा । १.(२) प्रत्येक वादपत्र में तथ्य शपथपत्र द्वारा साबित किए… more »
धारा २५ : वादों आदि के अंतरण करने की उच्चतम न्यायालय..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २५ : १.(वादों आदि के अंतरण करने की उच्चतम न्यायालय की शक्ति : १) किसी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकारों को सूचित करने के पश्चात् और उनमें से जो सुनवाई के इच्छुक हों उनको सुनने के पश्चात् यदि उच्चतम न्यायालय का किसी भी… more »
धारा २४ : अन्तरण और प्रत्याहरण की साधारण शक्ति :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २४ : अन्तरण और प्रत्याहरण की साधारण शक्ति : १) किसी भी पक्षकार के आवेदन पर और पक्षकारों को सूचना देने के पश्चात् और उनमें से जो सुनवाई के इच्छुक हों उनको सुनने के पश्चात् या ऐसी सूचना दिए बिना स्वप्रेरणा से, उच्च… more »
धारा २३ : किस न्यायालय में आवेदन किया जाए :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २३ : किस न्यायालय में आवेदन किया जाए : १) जहां अधिकारिता रखने वाले कई न्यायालय एक ही अपील न्यायालय के अधीनस्थ है वहां धारा २२ के अधीन आवेदन अपील न्यायालय में किया जाएगा । २) जहां ऐसे न्यायालय विभिन्न अपील न्यायालयों के… more »
धारा २२ : जो वाद एक से अधिक न्यायालयों में संस्थित..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २२ : जो वाद एक से अधिक न्यायालयों में संस्थित किए जा सकते है उनको अन्तरित करने की शक्ति : जहां कोई वाद दो या अधिक न्यायालयों में से किसी एक में संस्थित किया जा सकता है और ऐसे न्यायालयों में से किसी एक में संस्थित किया… more »
धारा २१-क : वाद लाने के स्थान के बारे में आक्षेप पर..
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २१-क : वाद लाने के स्थान के बारे में आक्षेप पर डिक्री को अपास्त करने के लिए वाद का वर्जन : उसी हक के अधीन मुकदमा करने वाले उन्हीं पक्षकारों के बीच या ऐसे पक्षकारों के बीच जिनसे व्युत्पन्न अधिकार के अधीन वे या उनमें से… more »
धारा २१ : अधिकारिता के बारे में आक्षेप :
सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ धारा २१ : अधिकारिता के बारे में आक्षेप : १.(१) वाद लाने के स्थान के सम्बन्ध में कोई भी आक्षेप किसी भी अपील या पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा तब तक अनुज्ञात नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसा आक्षेप प्रथम बार के न्यायालय में यथासंभव… more »